Monday, 9 July 2018

Nirbhaya case-3 दोषियों को होगी फांसी, SC ने बरकरार रखा फैसला


नई दिल्ली: निर्भया कांड यानी निर्भया गैंगरेप मामले (Nirbhaya Gangrape Case) में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए चार दोषियों में से तीन की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी और फांसी की सजा को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निर्भया के साथ दुष्कर्म और फिर उसकी हत्या के मामले में दोषियों को फांसी की सजा को बरकरार रखा. बता दें कि पांच मई 2017 को फांसी की सजा के फैसले को वापस लेने के लिए दोषियों द्वारा दाखिल याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा कि समीक्षा याचिका में पुनर्विचार के आधार की कमी है. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फांसी की सजा से बचने के लिए दोषियों के पास सिर्फ दो ही रास्ते हैं.

निर्भया गैंगरेप केस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दोषियों की याचिका खारिज, फांसी की सजा बरकरार

क्यूरेटिव पिटीशन:
निर्भया रेप केस के दोषियों के पास दो विकल्पों में से सबसे पहला विकल्प है क्यूरेटिव पिटिशन का. ये दोषी सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सजा में नरमी की गुहार लगा सकता है. यानी सुप्रीम कोर्ट से आखिरी बार रहम मांग सकता है. क्यूरेटिव पिटीशन तब दाखिल किया जाता है जब किसी मुजरिम की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दी जाती है. ऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन उस मुजरिम के पास मौजूद अंतिम मौका होता है जिसके ज़रिए वह अपने लिए सुनिश्चित की गई सज़ा में नरमी की गुहार लगा सकता है.

राष्ट्रपति के पास दया याचिका:
राष्ट्रपति के पास दया याचिका किसी भी दोषी या मुजरिम के पास आखिरी विकल्प होता है. अगर निर्भया रेप केसे के दोषियों की क्यूरिटिव पिटिशन भी सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाती है, तो इसका मतलब हुआ कि इन मुजरिमों के लिए कोर्ट के सारे दरवाजे बंद हो गये. अब इन दोषियों के पास विकल्प बचेगा सिर्फ राष्ट्रपति के पास गुहार अथवा दया याचिका की. ये दोषी अंतिम स्थिति में राष्ट्रपति के पास सजा में नरमी बरतने की गुहार लगाएंगे. अगर राष्ट्रपति इनकी दया याचिका को स्वीकार कर लेते हैं, तभी इन दोषियों की सजा में किसी तरह के बदलाव की गुंजाइश होगी. बता दें कि किसी भी मुजरिम के लिए राष्ट्रपति के पास दया याचिका अंतिम मौका होता है.

बता दें कि दक्षिणी दिल्ली के एक इलाके में 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में निर्भया का बलात्कार किया था और बाद में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी. निर्भया के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद निर्भया के पिता बद्रीनाथ ने कहा कि हमें पहले ही पता था कि पुनर्विचार याचिका खारिज होगी. मगर अब क्या? बहुत सारा वक्त बीत चुका है और इस दौरान महिलाओं के प्रति खतरा पहले से ज्यादा बढ़ गया है. मुझे उम्मीद है कि दोषी जल्द ही फांसी पर लटकेंगे.

क्या हैं क्यूरेटिव पिटीशन के नियम
हालांकि रिव्यू पिटीशन फाइल करने के कुछ नियम भी हैं जिसे याचिकाकर्ता को मानना पड़ता है, याचिकाकर्ता को अपने क्यूरेटिव पिटीशन में ये बताना ज़रूरी होता है कि आख़िर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है. ये क्यूरेटिव पिटीशन किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है, जिसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उसके पास भी भेजा जाना ज़रूरी होता है. अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से इत्तिफाक़ रखते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को वापिस उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है.
चीफ जस्टिस इंडिया  (सीजेआई) दीपक मिश्रा, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच मुकेश (29), पवन गुप्ता (22) और विनय शर्मा की याचिकाओं पर अपना फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब इन दोषियों के पास क्यूरेटिव पिटीशन और फिर राष्ट्रपति के पास दया याचिका का विकल्प ही बचता है.
शीर्ष अदालत का फैसला आने के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने कहा, "वो जुविनाइल नहीं थे. ये दुर्भाग्य है कि उन्होंने बेटी के साथ वो अपराध किया. कोर्ट के फैसले से न्यायिक व्यवस्था पर हमारा विश्वास और पक्का हुआ है. उम्मीद है कि हमें न्याय जरूर मिलेगा. दोषियों को फांसी होगी."
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद निर्भया के पिता बदरीनाथ सिंह ने कहा, "हमें यकीन था कि पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाएगी. लेकिन, अब आगे क्या? बहुत वक्त गुजर चुका है. महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. मुझे लगता है कि दोषियों को जल्द से जल्द फांसी होनी चाहिए. यही बेहतर होगा.

"क्या हैं क्यूरेटिव पिटीशन के नियम
हालांकि रिव्यू पिटीशन फाइल करने के कुछ नियम भी हैं जिसे याचिकाकर्ता को मानना पड़ता है, याचिकाकर्ता को अपने क्यूरेटिव पिटीशन में ये बताना ज़रूरी होता है कि आख़िर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है. ये क्यूरेटिव पिटीशन किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है, जिसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उसके पास भी भेजा जाना ज़रूरी होता है. अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से इत्तिफाक़ रखते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को वापिस उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है

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