Saturday, 30 June 2018

चल रे मटके टम्मक टू

चल रे मटके टम्मक टू '' का रिमिक्स कविता 
😁😁😁😁😁😁😁😁😁

हुए बहुत दिन बुढिया एक, 
चलती थी लाठी को टेक ।
उसके पास था बहुत सा माल , 
पर शौच जातीं वो खलिहान ।
मगर राह में गंदगी का ढेर, 
 जिसने लिया बुढ़िया को घेर ।
बुढिया ने सोची तदबीर 
जिससे चमक उठा तकदीर ।
ईंट और रेत मंगाई मोल 
शौचालय बनवायी गोल मटोल ।
रोज जाती शौचालय अब , 
देखे बुढिया को सबके सब ।।
बुढिया हो गई चंगी और नेक, 
अपना लाठी दिया है फेंक ।
सबको जाकर है अब समझाती 
गंदगी ही थी बुढापे की बीमारी ।
सबके सब अब जाग जाओ 
हर घर में शौचालय बनवाओ ।
बुढिया गाती जाती यूँ ।
चल सबको समझायें मैं-तू ।

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