चल रे मटके टम्मक टू '' का रिमिक्स कविता
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हुए बहुत दिन बुढिया एक,
चलती थी लाठी को टेक ।
उसके पास था बहुत सा माल ,
पर शौच जातीं वो खलिहान ।
मगर राह में गंदगी का ढेर,
जिसने लिया बुढ़िया को घेर ।
बुढिया ने सोची तदबीर
जिससे चमक उठा तकदीर ।
ईंट और रेत मंगाई मोल
शौचालय बनवायी गोल मटोल ।
रोज जाती शौचालय अब ,
देखे बुढिया को सबके सब ।।
बुढिया हो गई चंगी और नेक,
अपना लाठी दिया है फेंक ।
सबको जाकर है अब समझाती
गंदगी ही थी बुढापे की बीमारी ।
सबके सब अब जाग जाओ
हर घर में शौचालय बनवाओ ।
बुढिया गाती जाती यूँ ।
चल सबको समझायें मैं-तू ।
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