Saturday, 30 June 2018

सनकी किम जोंग उन ने सेनाधिकारी पर सरेआम 90 गोलियां चलवाईं

सोल। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने अपने एक शीर्ष सेनाधिकारी को सरेआम 90 गोलियों से छलनी करवा मौत के घाट उतार दिया।


किम ने इसका जिम्मा 9 लोगों को सौंपा, जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। लेफ्टिनेंट जनरल ह्योंग जू सोंग पर जवानों को तय सीमा से ज्यादा खाना और ईंधन बांटने के आरोप लगे थे। पिछले दिनों उन्हें अधिकारों का गलत इस्तेमाल करने और देशद्रोह का दोषी ठहराया गया था। इससे पहले भी किम बैठक में झपकी लेने पर अपने रक्षा प्रमुख ह्योंग योंग को मरवा चुका है।

 द सन' अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, सैन्य अधिकारी ह्योंग को राजधानी प्योंगयोंग स्थित मिलिट्री एकेडमी में सजा-ए-मौत दी गई। ह्योंग ने 10 अप्रैल को एक सैटेलाइट लॉन्चिंग स्टेशन का निरीक्षण किया था जहां जवानों ने उनसे कहा था कि अब परमाणु हथियार और रॉकेट बनाने के लिए हम और भूखे नहीं रह सकते हैं।
तब सेना के इस अधिकारी ने जवानों के परिवारों के लिए ज्यादा चावल और ईंधन बांटने के निर्देश दिए थे। इसके बाद उत्तर कोरियाई नेता को ह्योंग की यह बात नागवार गुजरी जिसके बाद किम के आदेश पर ह्योंग को सजा दी गई।

माल्या को 27 अगस्त को हाजिर होने का आदेश


नई दिल्ली। दिल्ली की एक विशेष अदालत ने हवाला मामले में भगोड़े उद्योगपति विजय माल्या को नोटिस जारी कर 27 अगस्त को हाजिर होने को कहा है। प्रवर्तन निदेशालय ने माल्या के खिलाफ भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक 2018 के तहत अदालत में आवेदन किया था, जिस पर संज्ञान लेते हुए यह नोटिस जारी किया गया है।
इस विधेयक के तहत माल्या की साढ़े बारह हजार करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की जानी है। निदेशालय के ट्विटर अकाउंट पर नोटिस जारी किए जाने की जानकारी दी गई है। माल्या की तरफ से इसी सप्ताह जारी एक बयान में कहा गया था कि वह सरकारी बैंकों के ऋण का भुगतान करने के लिए तैयार है।

माल्या का दावा है कि उसकी तरफ से सरकारी बैंकों के ऋण का भुगतान करने के लिए 2016 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया गया था, किंतु उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला था

संजू : फिल्म समीक्षा


राजकुमार हीरानी जैसे ऊंचे कद के निर्देशक के लिए संजय दत्त जैसा विषय स्तर से नीचे है। आखिर संजय दत्त के जीवन में ऐसा क्या है कि हीरानी को उस पर फिल्म बनाने की जरूरत महसूस हो। नि:संदेह संजय के जीवन में कई ऐसे उतार-चढ़ाव हैं जिस पर कमर्शियल फिल्म बनाई जा सकती है, लेकिन हीरानी कभी भी अपनी फिल्म को सफल बनाने के लिए इस तरह समझौते नहीं करते
संजय दत्त के साथ हीरानी ने तीन फिल्में की हैं और उस दौरान संजय ने ऐसे कई किस्से सुनाए जिन्हें सुन हीरानी को लगा हो कि संजय के ये रोचक किस्से दर्शकों तक पहुंचने चाहिए। साथ ही यह बात भी बताना जरूरी है कि अदालत फैसला दे चुकी है कि संजय दत्त आतंकवादी नहीं हैं और उन्होंने सिर्फ गैरकानूनी तरीके से हथियार रखे थे जिसकी सजा वे काट चुके हैं। यह बात ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई।

संजू फिल्म आपका भरपूर मनोरंजन करती है, लेकिन यदि गहराई से सोचा जाए तो यह संजय दत्त का महिमा मंडन भी करती है। संजय दत्त को एक 'हीरो' की तरह पेश किया गया है मानो उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत बड़े कारनामे किए हो। यही बात फिल्म देखते समय खटकती है क्योंकि कई जगह निर्देशक और लेखक लाइन क्रॉस कर गए हैं।

सभी जानते हैं कि संजय दत्त उस समय ड्रग्स की चपेट में आ गए थे जब उनकी पहली फिल्म 'रॉकी' रिलीज भी नहीं हुई थी। उसी दौरान उनकी मां और फिल्म अभिनेत्री नरगिस दत्त की मृत्यु हो गई थी और संजय दत्त नशे में चूर थे। इंटरवल तक, ड्रग्स लेने वाले संजय से लेकर तो  ड्रग्स से छुटकारा पाने वाले संजय की कहानी फिल्म में दिखाई गई है।
इंटरवल के बाद फिल्म उस किस्से को दिखाती है जब संजय हथियार रखने के मामले में फंस जाते हैं और किस तरह से संजय और उनके पिता सुनील दत्त परिवार पर लगे दाग को मिटाने के लिए संघर्ष करते हैं।

राजकुमार हीरानी और अभिजात जोशी ने बहुत चतुराई से स्क्रिप्ट लिखी है। उन्होंने फिल्म की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया है कि यह फिल्म संजय दत्त के जीवन में घटित कुछ घटनाओं से प्रेरित है। नाटकीयता के लिए कुछ कल्पना भी शामिल की गई है। वास्तविकता और कल्पना के धागों को उन्होंने इतनी बारीकी से पिरोया है कि दर्शकों के लिए यह समझना कठिन हो जाता है कि क्या कल्पना है और क्या हकीकत? कुछ हाल ड्रग्स लिए संजय दत्त की तरह हो जाता है जिसे समझ नहीं आता कि जो हो रहा है वो सपना है या हकीकत?

फिल्म की शुरुआत से संजय दत्त के प्रति इमोशन्स जगा दिए गए हैं। सीन ऐसे बनाए गए हैं कि दर्शक तुरंत संजय दत्त को पसंद करने लगते हैं। इसके बाद उन्हें सभी बातों में मजा आने लगता है और पूरी सहानुभूति संजय दत्त के साथ हो जाती है।
यदि किसी फिल्म का ऐसा सीन होता तो जिसमें अस्पताल में मां कोमा में है और सामने बैठा उसका बेटा ड्रग्स ले रहा है तो दर्शक उसे व्यक्ति को धिक्कारते, लेकिन 'संजू' में इस दृश्य को इस तरह से पेश किया गया है कि संजय के लिए आपको दया आती है। गलती संजय की नहीं बल्कि उस दोस्त की लगती है जो संजू को ड्रग्स के दलदल की ओर धकेलता है।


एक लेखिका (अनुष्का शर्मा) का किरदार बनाया गया है जो संजय दत्त के जीवन पर इसलिए किताब नहीं लिखती क्योंकि संजय ड्रग्स लेते हैं। आतंकवादी होने का उस पर ठप्पा लगा है, लेकिन बाद में वह किताब लिखने के लिए मान जाती है। इस सीक्वेंस के जरिये दर्शकों के मन में बात डाली गई है कि संजय दत्त फंस गए थे।

संजय दत्त के जीवन के कई किस्से हैं। एक सुपरस्टार को उन्होंने धमकाया था। एक हीरोइन के घर के सामने उन्होंने फायर किए थे। उन्होंने कई शादियां की। उनकी बड़ी बेटी त्रिशाला से उनके संबंध तनावपूर्ण रहे। वे गलत संगतों में फंस गए थे। 90 के दशक की एक टॉप हीरोइन से उनकी नजदीकियां थीं। इन बातों का कोई जिक्र फिल्म में नहीं मिलता।
यह भी कहा जा सकता है कि अब इन लोगों की अपनी जिंदगियां हैं जिनके साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं है, लेकिन एक राजनेता को दिखाने में समझौता नहीं किया गया जो संजय दत्त से मुलाकात के वक्त सो जाता है। इशारों-इशारों में वह नेता कौन है ये बता दिया गया है। जब यह दिखाया जा सकता है तो इशारों में और भी कई बातें दिखाई जा सकती थीं।

यहां पर लेखक और निर्देशक ने सूझबूझ से काम लिया और साफ कह दिया कि यह बायोपिक नहीं है। इसलिए उन्हें अधिकार मिल जाता है कि वे क्या दिखाएं और क्या नहीं? उन्होंने वहीं पहलू चुने जिससे यह लगे कि संजय दत्त मासूम थे और न चाहते हुए भी उलझते चले गए।

इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जाए तो आप फिल्म का भरपूर मजा ले सकते हैं। फिल्म लगातार मनोरंजन करती है। एक पल के लिए भी बोझिल नहीं होती। कई दृश्य आपको हंसाते हैं। आपको इमोशनल करते हैं। खास तौर पर संजय दत्त और सुनील दत्त वाले किस्से शानदार बने हैं।

संजय दत्त और सुनील दत्त के रिश्ते के बारे में कई बातें पता चलती हैं। संजय दत्त जब जेल में थे तब सुनील दत्त भी जमीन पर सोते थे और पंखा भी चालू नहीं करते थे क्योंकि संजय के पास भी कोई पंखा नहीं था। संजय दत्त अपने पिता से इसलिए नाराज थे क्योंकि वह कभी भी संजू की तारीफ नहीं करते थे। सुनील दत्त की छवि एक ईमानदार और साफ-सुथरे शख्स की थी और संजय दत्त इसलिए कुंठित थे कि वे पिता जैसे नहीं बन पाए। उनकी महानता को नहीं छू पाए।

फिल्म का वो सीक्वेंस बेहद इमोशनल है जहां पर संजय दत्त ने अपनी पिता की तारीफ में एक भाषण तैयार किया है और परिस्थितिवश वे अपने पिता को यह सुना नहीं पाते और अगले ही दिन सुनील दत्त की मृत्यु हो जाती है। पिता-पुत्र के रिश्ते में उपजे तनाव और प्यार को बेहद खूबसूरती के साथ दिखाया गया है और यह दिल को छू जाता है।

इसी तरह संजय दत्त और उनके खास दोस्त कमलेश कापसी (विक्की कोशल) के बीच दृश्य खूब हंसाते हैं। जो हर मुसीबत में संजय दत्त का साथ निभाता है और एक बार रूठ भी जाता है। कमलेश के अनुसार संजय की जिंदगी सिर्फ 'ख', 'प' और 'च' शब्दों के इर्दगिर्द घूमती है। इनकी पहली मुलाकात, साथ में नाइट क्लब जाना, चाय में वोदका पिलाना, संजय की पहली गर्लफ्रेंड रूबी से मिलने वाले सीन खूब मनोरंजन करते हैं।

निर्देशक के रूप में राजकुमार हीरानी ने फिल्म को संजय दत्त के 'सफाईनामा' के रूप में पेश किया है। वे संजय का यह रूप दिखाने में सफल रहे कि वे 'सिचुएशन्स' का शिकार रहे हैं और उनकी ज्यादा गलतियां नहीं थी। संजय की छवि खराब करने वाली बातों को उन्होंने चुना ही नहीं। संजय और अंडरवर्ल्ड कनेक्शन को भी उन्होंने उतना ही दिखाया जितना जरूरी था।

फिल्म को मनोरंजक बनाने में वे सफल रहे और पूरी फिल्म में उन्होंने दर्शकों को बांध कर रखा है। घटनाओं को उन्होंने इस तरह से पेश किया है कि फिल्म रोचक लगती है। कुछ दृश्यों में वे हास्य के नाम पर 'स्तर' से नीचे भी गए हैं।

इस फिल्म को आप चाहें तो सिर्फ रणबीर कपूर के लिए भी देख सकते हैं। फिल्म की पहली फ्रेम से ही वे संजय दत्त लगते हैं। ऐसा लगता है मानो हम संजय दत्त को देख रहे हैं। उनका अभिनय फिल्म को अविश्वसनीय ऊंचाइयों पर ले जाता है और दर्शकों को वे अपने अभिनय से सम्मोहित कर लेते हैं। केवल रणबीर का अभिनय देखते हुए ही हमें फिल्म अच्छी लगने लगती है। संजय दत्त के मैनेरिज्म और बॉडी लैंग्वेज को उन्होंने बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा है और कहीं भी पकड़ को ढीली नहीं होने दिया। इस फिल्म में उनकासुनील दत्त के किरदार में परेश रावल का अभिनय बेहतरीन है। सुनील दत्त की जो छवि है उसे परेश ने अपने अभिनय से दर्शाया है। दत्त साहब की विशाल शख्सियत को परेश के अभिनय से आप महसूस कर सकते हैं। विक्की कौशल ने संजय दत्त के जिगरी दोस्त के रूप में खूब मनोरंजन किया है। वे बेहद तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और हर फिल्म में उनका अभिनय देखने लायक होता है।

संजय दत्त को ड्रग्स देने वाले व्यक्ति का किरदार जिम सरभ ने इतना शानदार तरीके से अभिनीत किया है उनसे आप नफरत करने लगते हैं। छोटे-छोटे रोल में अनुष्का शर्मा, दीया मिर्जा, सोनम कपूर, बोमन ईरानी, करिश्मा तन्ना, मनीषा कोइराला, अंजन श्रीवास्तव, सयाजी शिंदे ने अपना काम शानदार तरीके से किया है।

फिल्म के गाने देखते समय अच्छे लगते हैं। अंत में संजय दत्त पर भी एक गाना फिल्माया गया है जिसमें वे 'मीडिया' और उसके 'सूत्रों' को कोसते नजर आते हैं जिन्होंने उनकी जिंदगी में भूचाल ला दिया था।

एक्टिंग और एंटरटेनमेंट इस फिल्म को देखने दो बड़े कारण हैं, लेकिन फिल्म हीरानी के स्तर की नहीं है। अभिनय वर्षों तक याद किया जाएगा

गर्भधारण करने का सही तरीका


इसका यह मतलब है कि भले भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश हो पर लाखों लोग इस बात कि जानकारी ठीक से नहीं रखते कि आखिर बच्चा  पैदा करने में क्या-क्या सावधानियां रखीं जायें . इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि हमारे समाज में sexऔर उससे संबधित बातों के बारे में बोलना-सुनना बुरा माना जाता है. और सही जानकारी ना मिल पाने के कारण लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है.

                                                               गर्भवती कैसे बनें ?
Pregnancy  से  related  कुछ  facts 
 जितने भी लोग बच्चा पैदा करना चाहते हैं , उनमे से लगभग  85%  लोग एक साल के अन्दर ऐसा करने में सफल हो जाते हैं. जिसमे से 22 % लोग तो पहले महीने के अन्दर ही सफल हो जाते हैं. यदि एक साल तक प्रयास करने पर भी बच्चा ना हो तो यह समस्य का विषय हो सकता है , और ऐसे  couples  को  infertile  समझा जाता हैं.बच्चा पैदा होने के लिए couples  के बीच सेक्स(सम्भोग /intercourse)  का होना अनिवार्य है. और इसके दौरान पुरुष का penis  (लिंग)  इस्त्री के  vagina (योनी)  में जाना चाहिए और  उसे  इस्त्री के vagina  में sperm ( शुक्राणु ) छोड़ने होंगे , जिससे sperm ,uterus(गर्भाशय) के मुख के पास इकठ्ठा हो जायेगा. यह प्रक्रिया सेक्स के दौरान स्वत: ही हो जाती  है , इसलिए इसकी चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है.इसके आलावा सम्भोग  ovaluation  के समय के आस-पास होना चाहिए. Ovaluation एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे महिलाओं के Ovary (अंडाशय ) से egg ( अंडे) निकलते हैं.Ovulation menstruation cycle(MC) यानि मासिक धर्म चक्र का पार्ट होता है, जो कि MC  के चौदहवें दिन, जब bleeding start  हो जाती है तब शुरू होता है.


बच्चा पैदा करने के लिए महिलाओं में सेक्स के दौरान orgasm  होना अनिवार्य नहीं है. Doctors  का कहना है कि दरअसल fallopian tube  जो कि अंडे को ovary से  uterus तक ले जाता है , sperm  को अपने अन्दर खींच ले जाता है और उसे egg  से मिलाने की कोशिश करता है. और इसके लिए महिलाओं में orgasm  का आना जरूरी नहीं है.
  1) Doctor  से जांच कराएं :
 बच्चे कि  planning  करने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लेना और अपनी जांच करा लेना चाहिए . इससे यह पता चल जायगा कि आपको किसी तरह कि शारीरिक परेशानी तो नहीं है , या कोई infection वगैरह. इससे sexually transmitted disease होने की सम्भावना ख़तम हो जाएगी. साथ ही अगर डिम्बग्रंथि अल्सर, फाइब्रॉएड, endometriosis, गर्भाशय के स्तर की सूजन जैसे परेशानियों की भी जांच हो जाएगी

2) Ovulation के समय के आस-पास  sex  करें
 Gynaecologists  का मानना है कि बच्चा पैदा करने के लिए  इस्त्री के eggs  ovary  से निकलने के  24  घंटे के अन्दर ही fertilize  होने चाहियें.  आदमी के  sperms  औरत के reproductive tract  (प्रजनन पथ)  में 48 से  72  घंटे तक ही जीवित रह सकते हैं. चूँकि बच्चा पैदा करने के लिए आवश्यक embryo (भ्रूण ) egg  और  sperm  के मिलन से ही बनता है , इसलिए couples  को ovulation  के दौरान कम से कम 72  घंटे में एक  बार ज़रूर sex  करना चाहिए और इस दौरान पुरुष को इस्त्री के ऊपर होना चाहिए ताकि sperms के leakage की सम्भावना कम हो. साथ ही पुरुषों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो  48  घंटे में   एक बार से ज्यादा ना ejaculate  करें  वरना उनका sperm count  काफी नीचे जा सकता है , जो हो सकता है कि egg  जो fertilize  करने में पर्याप्त ना हो

 Ovulation का  समय कैसे पता  करें ?
 Ovulation  का समय पता करने का अर्थ है उस समय का पता करना जब ovaries  से fertilization  के लिए तैयार  egg  निकले. इसे जानने के लिए आपको अपने period-cycle (मासिक-धर्म) का अंदाजा होना चाहिए. यह 24  से  40 दिन के बीच हो सकता है.  अब यदि आप को अपने next period  के आने का अंदाजा है तो आप उससे 12 से 16  दिन पहले का समय पता कर लीजिये , यही आपका  ovulation का समय होगा

  यदि period  की शुरुआत 30  तारीख को होनी है तो  14  से 18  तारिख का समय ovulation  का समय होगा.

 बच्चा पैदा करने के लिए उपयुक्त समय का पता करने का एक और तरीका है :
 Vagina से निकलने वाले चिपचिपे तरल को अपने ऊँगली पर लीजिये और उसकी elasticity check  कीजिये, जब ये अधिक और देर तक लचीला रहे तो समझ जाइये कि ovulation हुआ है और अब आप बच्चा पैदा करने के लिए सम्भोग कर सकते हैं.

3) क  healthy lifestyle बनाए रखें.

बच्चा पैदा करने के chances  बढ़ाने के लिए बेहद आवश्यक है कि  पति-पत्नी  एक स्वस्थ्य- जीवनशैली बनाये रखें. इससे   होने वाली संतान भी अच्छी होगी. खाने – पीने में पर्याप्त भोजन और फल की मात्रा रखें . Vitamins  कि सही मात्र से पुरुष-स्त्री दोनों की  fertility rate  बढती है .रोजाना व्यायाम करने से भी फायदा होता है.
सिगरेट पीने वाली महिलाओं में conceive  करने के chances   40 % तक घट जाते हैं


4) Stress-free (तनाव-मुक्त) रहने का प्रयास करें:
इसमें कोई शक नहीं है कि अत्यधिक तनाव आपके reproductive function  में बाधा डालेगा. तनाव से कामेक्षा ख़तम हो सकती है , और extreme conditions  में स्त्रियों में  menstruation  कि प्रक्रिया को रोक सकती है. एक शांत मन आपके शरीर पर अच्छा प्रभाव डालता है और आपके pregnant  होने की सम्भावना को बढ़ता है. इसके लिए आप regularly  breathing- exercises और  relaxation techniques  का प्रयोग कर सकती हैं.
5) Testicles  (अंडकोष) को ज्यादा heat  से बचाएँ :
यदि sperms  ज्यादा तापमान में expose  हो जायें तो वो मृत हो सकते हैं. इसीलिए testicles (जहाँ sperms  का निर्माण होता है)  body  के बहार होते हैं ताकि वो ठंढे रह सकें.  गाड़ी चलते समय ऐसे beaded सीट का प्रयोग करें जिसमे से थोड़ी हवा पास हो सके. और बहुत ज्यादा गरम पानी से इस अंग को ना धोएं .वैसे आम तौर पर इतना अधिक  precaution  लेने की ज़रुरत नहीं है पर जो लोग आग की भट्टी या किसी गरम स्थान पर देर तक काम करते हैं उन्हें सावधान रहने की ज़रुरत है. X-Ray technicians को हमेशा lead coat पहन कर काम करना चाहिए अन्यथा बच्चे में जन्मजात विसंगतियां हो सकती हैं.

6) सेक्स के बाद थोड़ी देर आराम करें:
सेक्स के बाद थोड़ी देर लेटे रहने से महिलाओं कि योनी से sperms  के निकलने के chances नहीं  रहते. इसलिए  सेक्स के बाद 15-20 मिनट लेटे रहना ठीक रहता है.
7)  किसी तरह का नशा ना करे:
ड्रग्स , नशीली दवाओं, सिगरेट या शराब के सेवन आदमी-औरत , दोनों के  hormones  का संतुलन बिगड़ सकता है. और आपकी प्रजनन क्षमता को बुरी तरह  प्रभावित कर सकता है.और बच्चों में भी  जन्मजात विसंगतियां हो सकती हैं.
8)  दवाओं का प्रयोग कम से कम करें :
कई दवाइयां , यहाँ तक कि आराम से मिल जाने वाली आम दवाइयां भी आपकी fertility  पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं.कई चीजें ovulation  को रोक सकती हैं , इसलिए दवाओं का उपयोग कम से कम करें. बेहतर होगा कि आप किसी भी दावा को लेने या छोड़ने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लें.खुद अपना इलाज करना घातक हो सकता है, ऐसा risk  ना लें.
9) Lubricants को avoid करें: 
Vagina  को  lubricate  में प्रयोग होने वाले कुछ ज़ेल्स, तरल पदार्थ , इत्यादि sperms  को महिलाओं की reproductive tract  में travel  करने में बाधक हो सकते हैं. इसलिए इनका प्रयोग अपने डाक्टर से पूछ कर ही करें.वैसे किसी artificial lubricant  का प्रयोग करने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि orgasm के दौरान शरीर खुद ही पर्याप्त मात्रा में liquid produce करता है जो sperm और  ova  दोनों के लिए healthy होता है.

कवि हूं मैं

सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है 
तब तक मुझको जीना होगा

मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाओं की
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाओं की
दे प्राण देह का मोह छुड़ाओं वाली हाड़ा रानी की
मीराओं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की
मुझको ही कथा सँजोनी है,
मुझको ही व्यथा पिरोनी है
स्मृतियाँ घाव भले ही दें
मुझको उनको सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
इन द्रौपदियों के चीरों से 
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर 
छलनी मेरा सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले
पीड़ाओं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
सरिताओं की मन्थर गति मे मैंने आशा का गीत सुना
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना
पीड़ा की इस मधुशाला में
आँसू की खारी हाला में
तन-मन जो आज डुबो देगा 
वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!


मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!


समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!


भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

चल रे मटके टम्मक टू

चल रे मटके टम्मक टू '' का रिमिक्स कविता 
😁😁😁😁😁😁😁😁😁

हुए बहुत दिन बुढिया एक, 
चलती थी लाठी को टेक ।
उसके पास था बहुत सा माल , 
पर शौच जातीं वो खलिहान ।
मगर राह में गंदगी का ढेर, 
 जिसने लिया बुढ़िया को घेर ।
बुढिया ने सोची तदबीर 
जिससे चमक उठा तकदीर ।
ईंट और रेत मंगाई मोल 
शौचालय बनवायी गोल मटोल ।
रोज जाती शौचालय अब , 
देखे बुढिया को सबके सब ।।
बुढिया हो गई चंगी और नेक, 
अपना लाठी दिया है फेंक ।
सबको जाकर है अब समझाती 
गंदगी ही थी बुढापे की बीमारी ।
सबके सब अब जाग जाओ 
हर घर में शौचालय बनवाओ ।
बुढिया गाती जाती यूँ ।
चल सबको समझायें मैं-तू ।

मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ !



वेल्मा रूडोल्फ( रोजी परिवर्तित नाम) जन्म टेनिसी के एक गरीब परिवार में हुआ था. चार साल की उम्र में उन्हें लाल बुखार के साथ डबल निमोनिया हो गया , जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गयीं. उन्हें पैरों में ब्रेस पहनने पड़ते थे और डॉक्टरों के अनुसार अब वो कभी भी चल नहीं सकती थीं.लेकिन उनकी माँ हमेशा उनको प्रोत्साहित करती रहतीं और कहती कि भगवान् की दी हुई योग्यता ,दृढ़ता और विश्वास से वो कुछ भी कर सकती हैं
रोजी बोलीं , ” मैं इस दुनिया कि सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनना चाहती हूँ .”
डॉक्टरों की सलाह के विरूद्ध 9 साल की उम्र में उन्होंने ने अपने ब्रेस उतार फेंकें और अपना पहला कदम आगे बढाया जिसे डोक्टरों ने ही नामुमकिन बताया था . 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रेस में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अन्तर से आखिरी स्थान पर आयीं. और उसके बाद वे अपनी दूसरी, तीसरी, और चौथी रेस में दौड़ीं और आखिरी आती रहीं , पर उन्होंने हार नहीं मानी वो दौड़ती रहीं और फिर एक दिन ऐसा आया कि वो रेस में फर्स्ट आ गयीं.  15  साल की उम्र में उन्होंने टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिल ले लिया , जहाँ उनकी मुलाकात एक कोच से हुई जिनका नाम एड टेम्पल था
उन्होंने ने कोच से कहा , ” मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ.”

टेम्पल ने कहा ,” तुम्हारे अन्दर जिस तरह का जज़्बा हैं तुम्हे कोई रोक नहीं सकता , और उसके आलावा मैं भी तुम्हारी मदद करुगा.”

देखते-देखते वो दिन आ गया जब विल्मा ओलंपिक्स में पहुँच गयीं  जहाँ अच्छे से अच्छे एथलीटों के साथ उनका मुकाबला होना था , जिसमे कभी न हारने वाली युटा हीन भी शामिल थीं. पहले 100  मीटर रेस हुई , विल्मा ने युटा को हराकर गोल्ड मैडल जीता, फिर 200  मीटर  का मुकाबला हुआ, इसमें भी विल्माने युटा को पीछे छोड़ दिया और अपना दूसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं . तीसरा इवेंट 400  मीटर रिले रेस थी , जिसमे अक्सर सबसे तेज दौड़ने  वाला व्यक्ति अंत में दौड़ता है . विल्मा और युटा भी अपनी-अपनी टीम्स में आखिरी में दौड़ रही थीं. रेस शुरू हुई , पहली तीन एथलीट्स ने आसानी से बेटन बदल लीं , पर जब विल्मा की बारी आई तो थोड़ी गड़बड़ हो गयी और बेटन गिरते-गिरते बची , इस बीच युटा आगे निकल गयी , विल्मा ने बिना देरी किये अपनी स्पीड बढ़ाई  और मशीन की तरह दौड़ते हुए आगे निकल गयीं और युटा को हराते हुए अपना तीसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं. यह इतिहास बन गया : कभी पोलियो से ग्रस्त रही महिला आज दुनिया की सबसे तेज धाविका बन चुकी थी.

अंधा घोड़ा

शहर के नज़दीक बने एक farm house में दो घोड़े रहते थे. दूर से देखने पर वो दोनों बिलकुल एक जैसे दीखते थे , पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है. पर अंधे होने के बावजूद farm के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था. अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता. घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं वो रास्ते से भटक ना जाए. वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान  पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता.
दोस्तों, बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं.  वो हमारा ख्याल रखते हैं और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं. कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं.

एक रात

Ek Raat
अक्षरा अकेले बस में सफर कर रही थी. अपनी सुरक्षा के प्रति उस के जेहन में तरहतरह के सवाल कौंध रहे थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उस का यह सफर खुशीखुशी संपन्न हो गया.
बस के हौर्न देते ही सभी यात्री जल्दीजल्दी अपनीअपनी सीटों पर बैठने लगे. अक्षरा ने बंद खिड़की से ही हाथ हिला कर चाचाचाची को बाय किया. उधर से चाचाजी भी हाथ हिलाते हुए जोर से बोले, ‘‘मैं ने कंडक्टर को कह दिया है कि बगल वाली सीट पर किसी महिला को ही बैठाए और पहुंचते ही फोन कर देना.’’
बस चल दी. अक्षरा खिड़की का शीशा खोलने की कोशिश करने लगी ताकि ठंडी हवा के झोंकों से उसे उलटी का एहसास न हो, मगर शीशा टस से मस नहीं हुआ तो उस ने कंडक्टर से शीशा खोल देने को कहा. कंडक्टर ने पूरा शीशा खोल दिया.
अक्षरा की बगल वाली सीट अभी भी खाली थी. उधर कंडक्टर एक दंपती से कह रहा था, ‘‘भाई साहब, प्लीज आप आगे वाली सीट पर बैठ जाएं तो आप की मैडम के साथ एक लड़की को बैठा दूं, देखिए न रातभर का सफर है, कैसे बेचारी पुरुष के साथ बैठेगी?’’

अक्षरा ने मुड़ कर देखा, कंडक्टर पीछे वाली सीट पर बैठे युवा जोड़े से कह रहा था. आदमी तो आगे आने के लिए मान गया पर औरत की खीज को भांप अक्षरा बोली, ‘‘मुझे उलटी होती है, उन से कहिए न मुझे खिड़की की तरफ वाली सीट दे दें.’’
‘‘वह सब आप खुद देख लीजिए,’’ कंडक्टर ने दो टूक लहजे में कहा तो अक्षरा झल्ला कर बोली, ‘‘तो फिर मुझे नहीं जाना, मैं अपनी सीट पर ही ठीक हूं.’’
कंडक्टर भी अव्वल दर्जे का जिद्दी था. वह तुनक कर बोला, ‘‘अब आप की बगल में कोई पुरुष आ कर बैठेगा तो मुझे कुछ मत बोलिएगा, आप के पेरैंट्स ने कहा था इसलिए मैं ने आप के लिए महिला के साथ की सीट अरेंज की.’’
तभी झटके से बस रुकी और एक दादानुमा लड़का बस में चढ़ा और लपक कर ड्राइवर का कौलर पकड़ कर बोला, ‘‘क्यों बे, मुझे छोड़ कर भागा जा रहा था, मेरे पहुंचे बिना बस कैसे चला दी तू ने?’’
ड्राइवर डर गया. मौका   देख कर कंडक्टर ने हाथ जोड़ते हुए बात खत्म करनी चाही, ‘‘आइए बैठिए, देखिए न बारिश का मौसम है इसीलिए, नहीं तो आप के बगैर….’’ उस ने लड़के को अक्षरा की बगल वाली सीट पर ही बैठा दिया.
अक्षरा समझ गई कि कंडक्टर बात न मानने का बदला ले रहा था. उस ने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया.
बारिश शुरू हो चुकी थी और बस अपनी रफ्तार पकड़ने लगी थी. टेढ़ेमेढ़े घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर अपने गंतव्य की ओर बढ़ती बस के शीशों से बारिश का पानी रिसरिस कर अंदर आने लगा. सभी अपनीअपनी खिड़कियां बंद किए हुए थे. अक्षरा ने भी अपनी खिड़की बंद करनी चाही, लेकिन शीशा अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ. उस ने इधरउधर देखा, कंडक्टर आगे जा कर बैठ गया था. पानी रिसते हुए अक्षरा को भिगा रहा था.
तभी बगल वाले लड़के ने पूछा, ‘‘खिड़की बंद करनी है तो मैं कर देता हूं.’’
अक्षरा ने कोई उत्तर नहीं दिया. फिर भी उस ने उठ कर पूरी ताकत लगा कर खिड़की बंद कर दी. पानी का रिसना बंद हो गया, बाहर बारिश भी तेज हो गई थी.
अक्षरा खिड़की बंद होते ही अकुलाने लगी. उमस और बस के धुएं की गंध से उस का जी मिचलाने लगा था. बाहर बारिश काफी तेज थी लेकिन उस की परवाह न करते हुए उस ने शीशे को सरकाना चाहा तो लड़के ने उठ कर फुरती से खिड़की खोल दी.
अक्षरा उलटी करने लगी. थोड़ी देर तक उलटी करने के बाद वह शांत हुई मगर तब तक उस के बाल और कपड़े काफी भीग चुके थे.
बगल में बैठे लड़के ने आत्मीयता से पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है, मैं पानी दूं, कुल्ला कर लीजिए.’’
अक्षरा अनमने भाव से बोली, ‘‘मेरे पास पानी है.’’
वह फिर बोला, ‘‘आप अकेली ही जा रही हैं, आप के साथ और कोई नहीं है?’’
अक्षरा इस सवाल से असहज हो
उठी, ‘‘क्यों मेरे अकेले जाने से आप को क्या लेना?’’
‘‘जी, मैं तो यों ही पूछ रहा था,’’ लड़के को भी लगा कि शायद वह गलत सवाल पूछ बैठा है, लिहाजा वह दूसरी तरफ देखने लगा.
थोड़ी देर तक बस में शांति छाई रही. बस के अंदर की बत्ती भी बंद हो चुकी थी. तभी ड्राइवर ने टेपरिकौर्डर चला दिया. कोई अंगरेजी गाना था, बोल तो स्पष्ट नहीं थे पर कानफोड़ू संगीत गूंज उठा.
तभी पीछे से कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, ओ ड्राइवरजी, बंद कीजिए इसे. अंगरेजी समझ में नहीं आती हमें. कुछ हिंदी में बजाइए.’’
कुछ देर बाद एक पुरानी हिंदी फिल्म का गाना बजने लगा.
रात काफी बीत चुकी थी, बारिश कभी कम तो कभी तेज हो रही थी. बस पहाड़ी रास्ते की सर्पीली ढलान पर आगे बढ़ रही थी. सड़क के दोनों तरफ उगी जंगली झाडि़यां अंधेरे में तरहतरह की आकृतियों का आभास करवा रही थीं. बारिश फिर तेज हो उठी. अक्षरा ने बगल वाले लड़के को देखा, वह शायद सो चुका था. वह चुपचाप बैठी रही.
पानी का तेज झोंका जब अक्षरा को भिगोते हुए आगे बढ़ कर लड़के को भी गिरफ्त में लेने लगा तो वह जाग गया, ‘‘अरे, इतनी तेज बारिश है आप ने उठाया भी नहीं,‘‘ कहते हुए उस ने खिड़की बंद कर दी.
थोड़ी देर बाद बारिश थमी तो खुद ही उठ कर खिड़की खोल भी दी और बोला, ‘‘फिर बंद करनी हो तो बोलिएगा,’’ और आंखें बंद कर लीं.
अक्षरा ने घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 3 बज रहे थे, नींद से उस की आंखें बोझिल हो रही थीं. उस ने खिड़की पर सिर टेक कर सोना चाहा, तभी उसे लगा कि लड़के का पैर उस के सामने की जगह पर फैला हुआ है. उस ने डांटने के लिए जैसे ही लड़के की तरफ सिर घुमाया तो देखा कि उस ने अपना सिर दूसरी तरफ झुका रखा था और नींद की वजह से तिरछा हो गया था और उस का पैर अपनी सीट के बजाय अक्षरा की सीट के सामने फैल गया था. अक्षरा उस की शराफत पर पहली बार मुसकराई.
सुबह के 6 बजे बस गंतव्य पर पहुंची. वह लड़का उठा और धड़धड़ाते हुए कंडक्टर के पास पहुंचा, ‘‘उस लड़की का सामान उतार दे और जिधर जाना हो उधर के आटो पर बैठा देना. एक बात और सुन ले जानबूझ कर तू ने मुझे वहां बैठाया था, आगे से किसी भी लड़की के साथ मेरे जैसों को बैठाया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. फिर वह उतर कर तेज कदमों से चला गया.’’
अक्षरा के मस्तिष्क में कई सवाल एकसाथ कौंध गए. उसे जहां उस लड़के की सहायता के बदले धन्यवाद न कहने का मलाल था, वहीं इस जमाने में भी इंसानियत और भलाई की मौजूदगी का एहसास.

Friday, 29 June 2018

सफलता

पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो,
मत डरो किसी मुसीबत से
अपने हौंसले को फौलाद करो,
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

आजाद करो उन ख्यालों से
जो आगे न तुम्हें बढ़ने देते
जो कहीं बढाते कदम हो तुम
तो हर पल ही तुमको रोकें,
मत डरो विचार नया है जो
उसी विचार को अपनी बुनियाद करो
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

आजाद करो उन रिवाजों से
जो बेड़ियाँ पाँव में हैं डाले
तोड़ दो उन दीवारों को
जो रोकते हैं सूरज के उजाले,
जिसे देखा न हो दुनिया ने
तुम ऐसा कुछ इजाद करो
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

आजाद करो उन लोगों से
जो तुम्हें गिराने पर हैं तुले
ऐसे लोगों की संगती से
कहाँ है किसी के भाग्य खुले,
जो करना है वो खुद ही करो
न किसी से तुम फ़रियाद करो
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

आजाद करो उन राहों से
किसी मंजिल पर जो न पहुंचे
वहां पहुँच कर क्या करना
जहाँ लगते न हो हम ऊँचें,
यूँ ही व्यर्थ की बातों में तुम
न अपना समय बर्बाद करो
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो,
मत डरो किसी मुसीबत से
अपने हौंसले को फौलाद करो,
पानी है सफलता जो तुमको
तो खुद को तुम आजाद करो।

जिद्दी औरत

जिद्दी औरत की
खोपड़ी में कुछ नहीं होता
वह हो जाती है
काठ या फिर लोहा
जिसमें धड़कती नहीं है साँस
उभरते नहीं हैं विचार।

वह कैकेयी होकर
उतारु हो जाती है आखिरी साँस तक
ढ़ोने के लिये वैधव्य।

उसकी जिद होती है
कौड़ी की तीन
और उपलब्धि-
उससे भी हीन।

मगर क्या फर्क पड़ता है उस पर
जिसे पूरी करनी है अपनी जिद
फिर चाहे क्यों न टूटे आसमान
गिरे बिजली किसी पर।

जिद्दी औरतों ने कराये हैं
महाभारत
और चाही है जान
स्वर्ण मृग की।

बदले में निर्दोष खून बहा है उनका
जिनका इन सबसे
कोई सरोकार न पहले था
न कभी बाद में रहा।

अधूरा प्यार


एक झोके की तरह सब टूट गया।बात उन दिनो की है जब नलिनी पढ़ाई के लिए बाहर गई, कामिनी ने जो सोचा था वही हुआ।नई नई सुबह उसका इन्तजार कर रही थी, सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा उसने सोचा था।बचपन से ही किसी को चाहती थी, और जब वो बाहर गई, तो मानो सपने सच होने लगे हों।एक दिन सब कुछ भूल कर उसने अंकुश को फ़ोन कर ही दिया, और उसको खुशी तब हुई जब अंकुश भी उसकी आवाज पहचान गया।अब आगे की कहानी उसकी, कामिनी की ही जुबानी।“ मैं और अंकुश रोज घंटो बात किया करते थे, उन दिनो हम दोनो अपनी-अपनी 12th के बाद की पढ़ाई के लिए घर से बाहर थे, वो तो इतना दूर नही था , जितना मैं थी।पर हम दोनो का प्यार असमान छू रहा था, जब भी मैं घर जाती कही ना कही दिख ही जाता।ऐसा लगता था मानो दिन बन गया हो, कभी मिले नही थे बचपन से साथ में पढ़ते थे, पर कभी कहा नही कुछ भी। उधर मेरे प्यार पर ग्रहण लगने ही वाला था मानो, वो अपनी मम्मी से कुछ नही छुपाता था।और हम दोनों बात करते है ये भी बता दिया उसने, अब वो दिन आ ही गया जिसमे दिल टूटना था।
उसका और मेरा रिजल्ट आया मैंने तो टॉप किया था, तो मैं बहुत खुश थी और वो एक विषय में रह गया। उसका सारा कसूर उसकी माँ ने मेरे ऊपर डाल दिया, ये बोलकर की मैं फ़ोन करती थी इसलिए वो पढ़ नही पाया।और अगले ही दिन हमारी प्रेम कहानी में, विलन की तरह उन्होने मेरे घर जाकर सब कुछ बोल दिया। फिर हम दोनो अगल हो गए, और टूटा हुआ दिल सम्भाल नही पाई।6 महीने बाद हम दोनो ने फिर से बात शुरु कर दी, क्योकी मैं बहुत प्यार करती थी उससे। सब कुछ सही था , फिर से उसकी माँ मेरे घर पहुच कर कुछ भी बोली। हद हो गई यार , कोई दूसरो की बेटी की इज्जत समझता ही नही ।पर कुछ और ही हुआ उसकी शादी कर दी, और मैं सम्भाल ना सकी क्या करती टूट गई थी।खुद को संभालते हुए बहुत दूर आ गई, बुरा तब लगा जब उसकी शादी 1 दिन भी ना टिकी।लड़की किसी और से प्यार करती थी तो अंकुश ने उसे जाने दिया, उसको प्यार की कीमत समझ आ चुकी थी। आज हम दोनो अकेले है, जब कभी उसकी याद आती है , बस आँख बन्द करके सब कुछ याद कर लेती हूँ।आज वो मेरे से बात जरूर करता है पर, वो टूट गया है, उसकी माँ के लिए भले ही वो कितना मजबूत क्यो ना हो।पर जब भी उससे बात करती हूँ , तो उसकी हँसी बहुत मिस करती हूँ, उसकी बाते रूला देती है मुझे।कमी ना उसकी थी ना मेरी बस कुछ हालात ही थे , जो हम अगल हो गए, आज अच्छे दोस्त है पर प्यार नही।“अब इसमे गल्ती कामिनी की थी की उसको प्यार हुआ, या फिर अंकुश की।आज भी मैने दोनो की आँखो में वो प्यार देखा है, ऐसा लगता है की अगर दोनो के घर बाले मान जाए।तो दोनो अभी शादी कर लें, और खुश भी रहेंगे ,आखिर बचपन का प्यार जो है।मेरी ये कहानी एक सच घटना है।कुछ गलत लगा तो माफ करना और कहानी पसन्द आये तो लाइक, और शेयर जरुर करना

गुरु-दक्षिणा


एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि  जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’
                               
                   गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया
                 पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं|

 यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ|ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’

उन्होंने जो कहानी सुनाई,वह इस प्रकार थी-
एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों नें अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए |गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे |सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं| वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा |’
अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे |लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं ,उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया |वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे |

अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था | अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके |
वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी|
पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ  नहीं  दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी |अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये |गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा- ‘पुत्रो,ले आये गुरुदक्षिणा ?’तीनों ने सर झुका लिया |गुरू जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा- ‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये |हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं
’गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले- ‘निराश क्यों होते हो ?प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो |’तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये |

वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला-‘गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं |आप का  संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक-सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है |
गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके |
दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम  निर्विक्षेप,स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें |’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था |
 अंततः,मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी |सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है |वस्तुतः,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है-ऐसा विद्वानों का मत है |



एक अधूरी कहानी

मेरी सदा’ आज की परिवेश की एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी है. जहाँ एक तरफ आदमी चाँद पर पहुँच गया है, वही दूसरी तरफ आज कुछ लोग अपने घरों से निकलना नहीं चाहते. यह कहानी है मेरी, ‘अन्जानी और अनिल’ की. हम जो एक दुसरे से वादा किये थे, जीवनभर साथ निभाने और एक साथ सामाजिक कुरीतियों से लड़ने का.

 मैं उसे अन्जानी कहकर बुलाता हूँ और इससे ज्यादा उसका व्यक्तिगत परिचय देने से इन्कार करता हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वह जो बलिदान अपनों की खातिर दी है, विफल जाये. पर मैं यह जरुर चाहता हूँ कि जिस दर्द में हम दोनों जी रहे हैं, उस दर्द को हमारे अपनो के साथ-साथ वो सारे लोग महसूस करें जो झूठी शान, ईज्जत और मर्यादा कि खातिर हम बच्चों को ग़मों के सागर में झोक देते हैं. यदि हम बच्चे अपनो की इज्जत और मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपना रिश्ता निभाते हैं, तो उन्हें भी हमारी भावनाओं का क़द्र करते हुए समाज के सम्मुख आना चाहिए. जब हमारा धर्म, भगवान और कानून अपना जीवनसाथी चुनने और घर बसाने का अधिकार देते हैं तो इसे पूर्ण करने के लिए आपका आशीर्वाद साथ क्यों नहीं? इसका मतलब या तो धर्म, भगवान और कानून गलत हैं या फिर हमारी झूठी शान, इज्जत और मर्यादा…
अन्जानी सिर्फ एक नाम नही अपितु यह प्यार, संस्कार, परिश्रम, समझदारी, बुद्धिमता, जिम्मेदारी और सबसे बड़ी बात त्याग की जीती जागती मूरत है. जिसे मैं अपने ख्यालों में बसाये हुए बड़ा हुआ. कभी सोचा नहीं था कि सपने भी यूँ सच हुआ करते हैं. पर उससे मिलने के बाद पता चला कि यदि आपकी चाहत सच्ची हो तो आसमान से तारे टूटकर जमीं पर गिर जाया करते हैं और उससे बिछड़ने के बाद पता चला कि जबतक हमारा समाज और अपने न चाहे तबतक खुदा लाख कोशिश कर ले, दो दिल कभी एक नहीं हो सकते. अन्जानी अपनी चार बहनों में सबसे छोटी और दो भाइयों से बड़ी है. वह बचपन में बहुत ही नटखट और शरारती थी. वह जिंदगी के हरेक पल को अपने अर्थों में जीना चाहती थी. लडको की तरह छोटे-छोटे बाल रखना, boys ड्रेस पहनना और साइकिलिंग उसके शौक हुआ करते थे. परन्तु वह ज्यों-ज्यों बड़ी होती गयी त्यों-त्यों उसे अपने घर की जिम्मेदारियों का एहसास होता गया. यूँही वक्त गुजरता गया और साथ ही साथ एक-एक करके तीनों बड़ी बहनों की शादियाँ होती गयी. कब बचपन की दहलीज पार की, उसको इस बात की खबर तक नहीं हुई. अपनी पढाई के साथ-साथ घर की सारी जिम्मेदारियां उस पर आ पड़ी. घर के सारे काम, झाड़ू-पोछा से लेकर चूल्हा-चाकी तक वह खुद करती. यहाँ तक की घर के सभी सदस्यों के कपडे इकटठा करके साफ करती. इसके साथ-साथ रातों को जागकर सूत काटा करती ताकि घर को आर्थिक रूप से मदद मिल सके. कारण घर की आर्थिक स्थिति का सही न होना. चूँकि वह जीवन में आगे बढ़ना चाहती थी इसलिए पापाजी ने उसकी पढाई यह सोचकर जारी रखी कि यदि पढ़-लिख लेगी तो अपनी बिरादरी में कोई ठीक-ठाक लड़का देखकर उसके हाथ पिल्ले कर दूंगा और अपनी आखिरी जिम्मेदारी से भी मुक्त हो जाऊंगा. आख़िरकार लड़किया माता-पिता के लिए बोझ या जिम्मेदारी ही तो होती हैं जिससे वो जल्द से जल्द मुक्ति चाहते हैं. यह हमारे समाज का वास्तविक रूप है जहाँ एक तरफ हम औरत को देवी का दर्ज़ा देते हैं वही दूसरी तरफ उसे दासी या क़र्ज़ समझते हैं. वैसे पापाजी को फक्र था कि उनके पास बेटी के रूप में एक बेटा हैं. मगर किस बात का……. यक़ीनन जब तक हमें अपना स्वार्थ सिद्ध करना होता है तो हर रिश्ता अच्छा लगता है. पर वही….
मैं अपने चार भाइयों और एक बहन में तीसरे नंबर का हूँ. भैया और दीदी की शादी कब की हो चुकी हैं. पर मैं अबतक शादी नहीं किया क्योंकि मैं पहले कुछ बनना चाहता था. वरना यदि घर वालों का बस चलता तो मैं अभी दो बच्चों का बाप होता. चूँकि मेरे विचार बचपन से ही कुछ हट कर थे, अतः मैं अपने घर के साथ-साथ गाँव का भी आँख का तारा था. मेरे ऊपर घर की कोई जिम्मेदारी नहीं थी. बस खाना, पीना, सोना, पढ़ना और……कुछ नहीं. मैं अक्सर एकांत में बैठकर, चिंतन और मनन किया करता था; इस ब्रह्माण्ड और इसके रहस्यों को लेकर. ऐसे ही लोगों की भीड़ में में खुद को तलाशता हुआ बड़ा हुआ. मेरे इस प्रकृति को लेकर मेरे घर वाले हमेशा चिंतित रहे. उन्हें लगता था कि मैं कहीं सन्यासी हो जाऊंगा. जो कि एक घर के लिए अभिशाप हैं. यदि कोई सन्यासी बन जाता है तो उसके घरवालों के लिए इससे कोई बड़ी डूब मरने वाली बात नहीं हो सकती. वही यदि चोर या डाकू बन जाता है तो एक बाप फक्र के साथ सीना तानकर चलता है. यह हमारे समाज का एक ऐसा कटु सत्य हैं जिसे हम स्वीकार नहीं करना चाहते, पर इससे हम इंकार भी नहीं कर सकते हैं. मैं इसकी परवाह किये बिना चाहता था कि इन सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध एक अभियान चलाया जाय जो भारतीय संस्कृति को अन्दर ही अन्दर खोखला करते जा रहे हैं. 

औरत

आखिर एक औरत चाहती क्या है, जवाब में एक 10 हज़ार पन्नों की किताब दिखाई जाती है। पर सही जवाब असल में सिर्फ एक पंक्ति का है। आप भी पढ़ें यह छोटी सी कहानी.. ..

 राजा हर्षवर्धन युद्ध में हार गए। हथकड़ियों में जीते हुए पड़ोसी राजा के सम्मुख पेश किए गए। पड़ोसी देश का राजा अपनी जीत से प्रसन्न था और उसने हर्षवर्धन के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा -  यदि तुम एक प्रश्न का जवाब हमें लाकर दे दोगे तो हम तुम्हारा राज्य लौटा देंगे, अन्यथा उम्र कैद के लिए तैयार रहें।

प्रश्न है- एक स्त्री को सचमुच क्या चाहिए होता है? इसके लिए तुम्हारे पास एक महीने का समय है, हर्षवर्धन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

वे जगह जगह जाकर विदुषियों, विद्वानों और तमाम घरेलू स्त्रियों से लेकर नृत्यांगनाओं, वेश्याओं, दासियों और रानियों, साध्वी सब से मिले और जानना चाहा कि एक स्त्री को सचमुच क्या चाहिए होता है? किसी ने सोना, किसी ने चाँदी, किसी ने हीरे जवाहरात, किसी ने प्रेम-प्यार, किसी ने बेटा-पति-पिता और परिवार तो किसी ने राजपाट और संन्यास की बातें की, मगर हर्षवर्धन को सन्तोष न हुआ।

महीना बीतने को आया और हर्षवर्धन को कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, किसी ने सुझाया कि दूर देश में एक जादूगरनी रहती है, उसके पास हर चीज का जवाब होता है शायद उसके पास इस प्रश्न का भी जवाब हो, हर्षवर्धन अपने मित्र सिद्धराज के साथ जादूगरनी के पास गए और अपना प्रश्न दोहराया।

जादूगरनी ने हर्षवर्धन के मित्र की ओर देखते हुए कहा – मैं आपको सही उत्तर बताऊंगी परंतु इसके एवज में आपके मित्र को मुझसे शादी करनी होगी। जादूगरनी बुढ़िया तो थी ही, बेहद बदसूरत थी, उसके बदबूदार पोपले मुंह से एक सड़ा दांत झलका जब उसने अपनी कुटिल मुस्कुराहट हर्षवर्धन की ओर फेंकी।
हर्षवर्धन ने अपने मित्र को परेशानी में नहीं डालने की खातिर मना कर दिया, सिद्धराज ने एक बात नहीं सुनी और अपने मित्र के जीवन की खातिर जादूगरनी से विवाह को तैयार हो गया। तब जादूगरनी ने उत्तर बताया – "स्त्रियां, स्वयं निर्णय लेने में आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं।"

यह उत्तर हर्षवर्धन को कुछ जमा, पड़ोसी राज्य के राजा ने भी इसे स्वीकार कर लिया और उसने हर्षवर्धन को उसका राज्य लौटा दिया। इधर जादूगरनी से सिद्धराज का विवाह हो गया, जादूगरनी ने मधुरात्रि को अपने पति से कहा, 'चूंकि तुम्हारा हृदय पवित्र है और अपने मित्र के लिए तुमने कुर्बानी दी है अतः मैं चौबीस घंटों में बारह घंटे तो रूपसी के रूप में रहूंगी और बाकी के बारह घंटे अपने सही रूप में, बताओ तुम्हें क्या पसंद है?

सिद्धराज ने कहा - प्रिये, यह निर्णय तुम्हें ही करना है, मैंने तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया है, और तुम्हारा हर रूप मुझे पसंद है । जादूगरनी यह सुनते ही रूपसी बन गई, उसने कहा - चूंकि तुमने निर्णय मुझ पर छोड़ दिया है तो मैं अब हमेशा इसी रूप में रहूंगी, दरअसल मेरा असली रूप ही यही है। बदसूरत बुढ़िया का रूप तो मैंने अपने आसपास से दुनिया के कुटिल लोगों को दूर करने के लिए धरा हुआ था।


कथा का लोकसंकेत यह है कि सामाजिक व्यवस्था ने औरत को परतंत्र बना दिया है, पर मानसिक रूप से कोई भी महिला परतंत्र नहीं है। इसीलिए जो लोग पत्नी को घर की मालकिन बना देते हैं, वे अक्सर सुखी देखे जाते हैं। आप उसे मालकिन भले ही न बनाएं, पर उसकी ज़िन्दगी के एक हिस्से को मुक्त कर दें। उसे उस हिस्से से जुड़े निर्णय स्वयं लेने दें।

प्यार का चसका

मुकेश ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.
यामेश्वरी

शहर के कालेज में पढ़ने वाला मुकेश छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’
यह सुन कर दूसरे दिन ही मुकेश अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.
जब मुकेश वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. मुकेश को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.
रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो मुकेश उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर मुकेश ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.
ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’
‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’
इस के बाद मुकेश उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.
रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर मुकेश उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.
जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद मुकेश आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.
वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’
‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने मुकेश के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.
शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो मुकेश को देख कर खुश हुए.
रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं मुकेश के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’
यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’
‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो मुकेश बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

सेक्स की लत

एक ऐसे शख़्स की कहानी जो सेक्स की लत से भयानक तरीके से पीड़ित है. वह इस कदर बेकाबू है कि कहानी पढ़ते हुए आप ख़ुद हैरान रह जाएंगे. पढ़ें, उसी शख़्स की ज़ुबानी यह कहानी-
मैं 10 साल की उम्र से ही कई बुरी लतों से पीड़ित था. अगर आप ड्रग की लत से पीड़ित हैं तो आपका जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है.
यहां सेक्स सबसे जटिल होता है. आप इसे बिना किसी बाहरी डर के सालों कर सकते हैं. लोग कहते हैं कि लत एक बीमारी है, लेकिन मेरा मानना है कि यह भावनात्मक सदमे का एक लक्षण है.
जब मैं तीन साल का था तो मेरे माता-पिता के बीच तलाक़ हो चुका था. मैं अपनी मां के साथ रहता था और उन्हें एहसास हुआ कि मैं आत्मकामी और भावनात्मक रूप से सताने वाला शख़्स हूं.

उन्हें मुझसे और मेरे भाई से बहुत ज़्यादा उम्मीदें थीं. हमलोग कभी पर्याप्त रूप से अच्छे नहीं हुए. हमलोगों ने जो कुछ भी किया उसमें कुछ न कुछ ग़लत ज़रूर हुआ. इसका कोई मतलब नहीं था कि हमने कितनी मेहनत की.
पॉर्न स्टार लुक के लिए नाबालिगों की बढ़ती सर्जरी
मैं चीनी से काफ़ी आसक्त था और कुकीज़ बहुत ज़्यादा खाता था. भावनाओं को सुन्न करने का एक तरीका था. अपनी ज़िंदगी से निपटने के लिए पलायनवाद का सहारा लेता था. 12 साल की उम्र में मुझे पता चला कि मैं गे हूं. मैं एक छोटे गांव में पला-बढ़ा था. मेरी कामुकता सामान्य नहीं थी.
मैंने 11 साल की उम्र से हस्तमैथुन शुरू कर दिया था. 14 साल की उम्र में मुझे पहला कंप्यूटर मिला और मैंने हर दिन जमकर पॉर्न देखना शुरू कर दिया. मेरी मां तड़के 4.30 बजे सुबह काम पर निकल जाती थीं.
मां के घर छोड़ने के बाद मैं और भाई जागते थे. मेरा भाई प्ले स्टेशन पर खेलना चाहता था और मैं कंप्यूटर पर पॉर्न देखना चाहता था. सुबह सात बजे मैं हमेशा स्कूल बस के वक़्त पर तैयार रहता था, हर दिन इसमें कटौती होती गई. जितना ज़्यादा संभव हो सके मैं हस्तमैथुन करने की कोशिश करता. मैं बिल्कुल किनारे पर था.

बचपन में मैं हफ़्ते में दो दिन तैराकी की ट्रेनिंग लेता था. कुछ दूरी तक तैरना होता था और उसके बाद 20 मिनट तक चेंजिंग रूम में हस्तमैथुन करता था. वीकेंड में पूरा दिन अपने कमरे में बिताता था और काम करने का दावा करता था. सच यह था कि मैं दिन भर पॉर्न देखता था.
बचपन में आप ख़ुद के लिए निजी जगह की तलाश करते हैं. यदि मैं अपनी मां से कुछ भी छुपाने की कोशिश करता तो अजीब तरह से बहस शुरू हो जाती थी. मेरा मानना है कि मां की नाक के नीचे पॉर्न देखने से मुझे ख़ुद को काबू में रखने की सीख मिली.
जब मैं 18 साल का था तब मुझे एक जंगल में पहला यौन अनुभव ओरल सेक्स के रूप में हुआ. मैंने ऑनलाइन पुरुषों से चैट करना शुरू किया. मेरे लिए असली ज़िंदगी में लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं था. वह 34 साल का था और ख़ासकर आकर्षक नहीं था, लेकिन मेरा मानना था कि वह शुरू करने के लिहाज से अच्छा था.
जब इंजीनियरिंग स्कूल में मैं 21 साल का हुआ तो एक और गे से ऑनलाइन मुलाक़ात हुई. वह पहले मुझे भाप से स्नान कराने के लिए ले गया और यह मेरे लिए रहस्य खुलने की तरह था. अचानक मैं उस जगह पर पहुंच चुका था जहां सभी गे सेक्स कर रहे थे. मुझे उस आज़ादी को देख बहुत अच्छा लगा.

मैंने महीने में तीन बार सौना (भाप स्नान का कमरा) जाना शुरू किया. मैं तब सुरक्षित सेक्स का पक्का समर्थक था, लेकिन एक साल बाद मैंने उस गे को देखना शुरू कर दिया था जो असुरक्षित सेक्स करना चाहता था. मैं उसके साथ हो लिया. मुझे उस पर भरोसा था.
कुछ महीने बाद मैंने हर रात सौना में गुज़ारना शुरू कर दिया. तब असुरक्षित सेक्स ही करता था. मुझे पता है कि यह अजीब लगता है, लेकिन लत में नयापन महत्वपूर्ण होता है. सेक्स के दौरान हम डोपामाइन का इस्तेमाल करते थे.
मैंने दो बार उन लोगों के साथ असुरक्षित सेक्स किया जिनके बारे में पता था कि वे एचआईवी पॉज़ीटिव हैं. मैं ख़तरों से पूरी तर वाकिफ़ था. मैं न्यूक्लियर इंजीनियर था और मुझे सब पता था. मैं कोई बेवकूफ़ नहीं था, लेकिन जब आप ये सब शुरू करते हैं तो सब कुछ दिमाग़ से बाहर हो जाता है.
जब तनाव में रहता या परेशान होता तो मैं अपने भीतर अपनी मां की वह आवाज़ सुनता था कि मैं अच्छा नहीं हूं. एचआईवी पॉज़िटिव लोग एक समुदाय के रूप में जुड़े होते हैं. यदि आप सोचते हैं कि आप उन्हीं में से एक हैं तो वे आपका ख़्याल रखना शुरू कर देते हैं और आप फिर उस ग्रुप में शामिल हो जाते हैं.
मैं जानता हूं कि यह मूर्खतापूर्ण लगता है. यदि आप किसी के शरीर में एचआईवी जान-बूझकर पहुंचाते हैं तो यह अपराध है. मैंने ऐसा कभी नहीं किया क्योंकि मैं अब भी नेगेटिव हूं. लेकिन मैं इसके बारे में सोचता हूं. इसे स्वीकार करना काफ़ी कठिन है. दूसरों के नुक़सान पहुंचाने के बारे में इसलिए सोचता हूं क्योंकि मैं अपनी भावनाओं से निपटन

Thursday, 28 June 2018

Kavita4


अग्नि-गान
अग्नि-स्तवन
अज विलाप
अतृप्ति
अतिथि से
अधिकार-वे मुस्काते फूल, नहीं
अनन्त की ओर
अन्त-विश्व-जीवन के उपसंहार
अनुरोध
अनोखी भूल
अपनी बात (सप्तपर्णा)
अबला
अभय
अभिमान-छाया की आँखमिचौनी
अलि अब सपने की बात (गीत)
अलि कहाँ सन्देश भेजूँ
अलि, मैं कण-कण को जान चली
अलि वरदान मेरे नयन
अलि से
अश्रु मेरे माँगने जब
अश्रु यह पानी नहीं है
आओ प्यारे तारो आओ
आज क्यों तेरी वीणा मौन
आज तार मिला चुकी हूँ
आज दे वरदान
आज मेरे नयन के तारक हुए जलजात देखो
आज सुनहली वेला
आना-जो मुखरित कर जाती थी
आभा-कण
आलोक पर्व-दीप माटी का हमारा
आशा
आह्वान
आँखों में अंजन-सा आँजो मत अंधकार (गीत)
आँसू
आँसुओं के देश में
आँसू का मोल न लूँगी मैं
आँसू की माला
आँसू से धो आज
इन सपनों के पंख न काटो
इस जादूगरनी वीणा पर
उत्तर-इस एक बूँद आँसू में
उद्बोधन
उनका प्यार
उनसे (रश्मि)
उनसे (नीहार)
उपालम्भ-दिया क्यों जीवन का वरदान
उर तिमिरमय घर तिमिरमय
उलझन-अलि कैसे उनको पाऊँ
उस पार-घोर तम छाया चारों ओर
उषा
एक बार आओ इस पथ से
ओ अरुण वसना
ओ चिर नीरव
ओ पागल संसार
ओ विभावरी
ओ विषपायी
कभी
कमलदल पर किरण अंकित
करते श्याम विहार (गीत)
क्रय-चुका पायेगा कैसे बोल
क्रांति गीत
कहता जग दुख को प्यार न कर
कहाँ
कहाँ उग आया है तू हे बीज अकेला
कहाँ गया वह श्यामल बादल
कहाँ रहेगी चिड़िया
कहाँ से आये बादल काले
किस तरंग ने इसे छू लिया
किसी का दीप निष्ठुर हूँ
कीर का प्रिय आज पिंजर खोल दो
केवल जीवन का क्षण मेरे
कैसे सँदेश प्रिय पहुँचाती
कोई यह आँसू आज माँग ले जाता
कोकिल गा न ऐसा राग
कोयल
कौन ?
कौन तुम मेरे हृदय में
कौन है?-कुमुद-दल से वेदना के
क्या जलने की रीति
क्या नई मेरी कहानी
क्या न तुमने दीप बाला?
क्या पूजन क्या अर्चन रे
क्यों-सजनि तेरे दृग बाल
क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे
क्यों इन तारों को उलझाते (गीत)
क्यों जग कहता मतवाली
क्यों पाषाणी नगर बसाते हो जीवन में
क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन
क्यों वह प्रिय आता पार नहीं
खारे क्यों रहे सिंधु
खुदी न गई
खोज
गृह-प्रवेश
गूँजती क्यों प्राण-वंशी
गोधूली अब दीप जगा ले
घन बनूँ वर दो मुझे प्रिय
घिरती रहे रात
चयन
चातकी हूँ मैं
चाह
चिर सजग आँखे उनींदी-जाग तुझको दूर जाना
जग अपना भाता है
जग ओ मुरली की मतवाली
जग करुण करुण, मैं मधुर मधुर
जब-नींद में सपना बन अज्ञात
जब यह दीप थके तब आना
ज्योतिष्मती
जाग जाग सुकेशिनी री
जाग बेसुध जाग
जागरण
जागो बेसुध रात नहीं यह
जाने किसकी स्मित रूम-झूम
जाने किस जीवन की सुधि ले
जाल परे अरुझे सुरझै नहिं
जीवन
जीवन दीप-किन उपकरणों का दीपक
जो तुम आ जाते एक बार
जो न प्रिय पहिचान पाती
जो मुखरित कर जाती थीं-आना
झरते नित लोचन मेरे हों
झिप चलीं पलकें तुम्हारी पर कथा है शेष
झिलमिलाती रात मेरी
टकरायेगा नहीं
टूट गया वह दर्पण निर्मम
ठाकुर जी
तन्द्रिल निशीथ में ले आये
तपोवन यात्रा
तब
तब क्षण क्षण मधु-प्याले होंगे
तम में बनकर दीप
तरल मोती से नयन भरे
तितली से
तिमिर में वे पदचिह्न मिले
तुमको क्या देखूं चिर नूतन
तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है
तुम दुख बन इस पथ से आना
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या
तुम सो जाओ मैं गाऊँ
तुम्हारी बीन ही में बज रहे हैं बेसुरे सब तार
तुम्हें बाँध पाती सपने में
तू धूल-भरा ही आया
तू भू के प्राणों का शतदल
तेरी छाया में अमिट रंग-बहना जलना
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना
दुविधा-कह दे माँ क्या अब देखूँ
दिया-धूलि के जिन लघु कणों में
दिया क्यों जीवन का वरदान-उपालम्भ
दीन भारतवर्ष
दीप
दीपक अब रजनी जाती रे(गीत)
दीपक चितेरा
दीपक में पतंग जलता क्यों
दीप कहीं सोता है
दीप तेरा दामिनी
दीप-मन
दीप मेरे जल अकम्पित
दु:ख आया अतिथि द्वार (गीत)
दुःख-रजतरश्मियों की छाया में
दूर घर मैं पथ से अनजान
देखो
देव अब वरदान कैसा
देशगीत : अनुरागमयी वरदानमयी
देशगीत : मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला
धीरे धीरे उतर क्षितिज से
धूप सा तन दीप सी मैं
ध्वज गीत: विजयनी तेरी पताका
नभ आज मनाता तिमिर-पर्व-आलोक-छंद
न रथ-चक्र घूमे
नव घन आज बनो पलकों में
नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ
निभृत मिलन
निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते
निर्वाण-घायल मन लेकर सो जाती
निश्चय
नीरव भाषण-गिरा जब हो जाती है मूक
पथ देख बिता दी रैन
पथ मेरा निर्वाण बन गया
पपीहे के प्रति-जिसको अनुराग सा
प्रश्न (रश्मि)-अश्रु ने सीमित कणों में
प्रश्न (सप्तपर्णा)
पंकज-कली
पंथ होने दो अपरिचित
प्रतीक्षा
प्रत्यागमन
प्राणपिक प्रिय-नाम रे कह
प्राण रमा पतझार सजनि
प्राण हँस कर ले चला जब
प्राणों ने कहा कब दूर,पग ने कब गिने थे शूल
परिचय
प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर
प्रिय गया है लौट रात
प्रिय चिरन्तर है सजनि
प्रिय ! जिसने दुख पाला हो
प्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही 

Hindi kavita 2

अगम द्रुगम गड़ि रचिओ बास
अनभउ किनै न देखिआ बैरागीअड़े
अमलु सिरानो लेखा देना
अलहु एकु मसीति बसतु है अवरु मुलखु किसु केरा
अवर मूए किआ सोगु करीजै
अवलि अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे
अंतरि मैलु जे तीरथ नावै
आकासि गगनु पातालि गगनु है चहु दिसि गगनु रहाइले
आपे पावकु आपे पवना
इन्हि माइआ जगदीस गुसाई तुम्हरे चरन बिसारे
इसु तन मन मधे मदन चोर
इहु धनु मेरे हरि को नाउ
इंद्र लोक सिव लोकहि जैबो
उदक समुंद सलल की साखिआ नदी तरंग समावहिगे
उलटि जाति कुल दोऊ बिसारी
उसतति निंदा दोऊ बिबरजित तजहु मानु अभिमाना
ऐसो इहु संसारु पेखना रहनु न कोऊ पईहै रे
ओइ जु दीसहि अम्बरि तारे
काहू दीन्हे पाट पट्मबर काहू पलघ निवारा
काम क्रोध त्रिसना के लीने गति नही एकै जानी
कहा नर गरबसि थोरी बात
कहा सुआन कउ सिम्रिति सुनाए
करवतु भला न करवट तेरी
कउनु को पूतु पिता को का को
किआ जपु किआ तपु किआ ब्रत पूजा
किआ पड़ीऐ किआ गुनीऐ
कोरी को काहू मरमु न जानां
कवन काज सिरजे जग भीतरि जनमि कवन फलु पाइआ
किउ लीजै गढु बंका भाई
कोटि सूर जा कै परगास
कूटनु सोइ जु मन कउ कूटै
कोऊ हरि समानि नही राजा
काइआ कलालनि लाहनि मेलउ गुर का सबदु गुड़ु कीनु रे
किनही बनजिआ कांसी तांबा किनही लउग सुपारी
खसमु मरै तउ नारि न रोवै
गगन नगरि इक बूंद न बरखै नादु कहा जु समाना
गज साढे तै तै धोतीआ
गुड़ु करि गिआनु धिआनु करि महूआ भउ भाठी मन धारा
गुर सेवा ते भगति कमाई
ग्रिहि सोभा जा कै रे नाहि
गंगा कै संगि सलिता बिगरी
गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर
गरभ वास महि कुलु नही जाती
ग्रिहु तजि बन खंड जाईऐ चुनि खाईऐ कंदा
चारि दिन अपनी नउबति चले बजाइ
चारि पाव दुइ सिंग गुंग मुख तब कैसे गुन गईहै
चरन कमल जा कै रिदै बसहि सो जनु किउ डोलै देव
चंदु सूरजु दुइ जोति सरूपु
जउ तुम्ह मो कउ दूरि करत हउ तउ तुम मुकति बतावहु
जनम मरन का भ्रमु गइआ गोबिद लिव लागी
जैसे मंदर महि बलहर ना ठाहरै
जिह सिमरनि होइ मुकति दुआरु
जल महि मीन माइआ के बेधे
जोइ खसमु है जाइआ
जब जरीऐ तब होइ भसम तनु रहै किरम दल खाई
जब लगु मेरी मेरी करै
जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती
जा के निगम दूध के ठाटा
जलि है सूतकु थलि है सूतकु
जननी जानत सुतु बडा होतु है
जीवत पितर न मानै कोऊ
जिह बाझु न जीआ जाई
जिह कुलि पूतु न गिआन बीचारी
जिह मुख बेदु गाइत्री निकसै सो किउ ब्रहमनु बिसरु करै
जिह सिरि रचि रचि बाधत पाग
जिनि गड़ कोट कीए कंचन के छोडि गइआ सो रावनु
जो जनु भाउ भगति कछु जानै ता कउ अचरजु काहो
जो जन लेहि खसम का नाउ
झगरा एकु निबेरहु राम
टेढी पाग टेढे चले लागे बीरे खान
डंडा मुंद्रा खिंथा आधारी
तरवरु एकु अनंत डार साखा पुहप पत्र रस भरीआ
तूं मेरो मेरु परबतु सुआमी ओट गही मै तेरी
तूटे तागे निखुटी पानि
थाके नैन स्रवन सुनि थाके थाकी सुंदरि काइआ
दीनु बिसारिओ रे दिवाने दीनु बिसारिओ रे
देही गावा जीउ धर महतउ बसहि पंच किरसाना
देइ मुहार लगामु पहिरावउ
देखौ भाई ग्यान की आई आंधी
दिन ते पहर पहर ते घरीआं आव घटै तनु छीजै
दुइ दुइ लोचन पेखा
दरमादे ठाढे दरबारि
दुनीआ हुसीआर बेदार जागत मुसीअत हउ रे भाई
धंनु गुपाल धंनु गुरदेव
नाइकु एकु बनजारे पाच
नांगे आवनु नांगे जाना
नगन फिरत जौ पाईऐ जोगु
ना इहु मानसु ना इहु देउ
नरू मरै नरु कामि न आवै
निंदउ निंदउ मो कउ लोगु निंदउ
निरधन आदरु कोई न देइ
नित उठि कोरी गागरि आनै लीपत जीउ गइओ
पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ
पडीआ कवन कुमति तुम लागे
पंडित जन माते पड़्हि पुरान
प्रहलाद पठाए पड़न साल
बंधचि बंधनु पाइआ
बहु परपंच करि पर धनु लिआवै
बनहि बसे किउ पाईऐ जउ लउ मनहु न तजहि बिकार
बारह बरस बालपन बीते
बेद कतेब इफतरा भाई दिल का फिकरु न जाइ
बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै
बेद की पुत्री सिम्रिति भाई
बेद पुरान सभै मत सुनि कै करी करम की आसा
बिदिआ न परउ बादु नही जानउ
बुत पूजि पूजि हिंदू मूए तुरक मूए सिरु नाई
भुजा बांधि भिला करि डारिओ
भूखे भगति न कीजै
माथे तिलकु हथि माला बानां
मैला ब्रहमा मैला इंदु
मनु करि मका किबला करि देही
मन रे छाडहु भरमु प्रगट होइ
माता जूठी पिता भी जूठा जूठे ही फल लागे
मउली धरती मउलिआ अकासु
मुंद्रा मोनि दइआ करि झोली पत्र का करहु बीचारु रे
मुसि मुसि रोवै कबीर की माई
राजन कउनु तुमारै आवै
राजास्रम मिति नही जानी तेरी
राम जपउ जीअ ऐसे ऐसे
राम सिमरि राम सिमरि राम सिमरि भाई
रे जीअ निलज लाज तोहि नाही
रे मन तेरो कोइ नही खिंचि लेइ जिनि भारु
राखि लेहु हम ते बिगरी
रिधि सिधि जा कउ फुरी तब काहू सिउ किआ काज
रामु सिमरु पछुताहिगा मन
री कलवारि गवारि मूढ मति उलटो पवनु फिरावउ
रोजा धरै मनावै अलहु सुआदति जीअ संघारै
लख चउरासीह जीअ जोनि महि भ्रमत नंदु बहु थाको रे
लंका सा कोटु समुंद सी खाई
सभु कोई चलन कहत है ऊहां
सनक सनंद महेस समानां
संतु मिलै किछु सुनीऐ कहीऐ
संतहु मन पवनै सुखु बनिआ
सरपनी ते ऊपरि नही बलीआ
सो मुलां जो मन सिउ लरै

Beach पर नहीं पी सकेंगे शराब, इस तारीख से लग जाएगा BAN

बैन के बावजूद आप बीच पर शराब पीते हैं तो वहां की पुलिस सख्ती के साथ आप पर कार्यवाही करेगी. साथ ही प्लास्टिक कूड़ा फैलाने पर 100 रु. के बद...